एल. एस. यादव
वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा पेश किए गए बजट में ऐसा पहली बार हुआ है कि रक्षा बजट पर एक भी पंक्ति नहीं बोली गई। बाद में जारी आधिकारिक आंकड़ों में कहा गया कि यदि वन रैंक वन पेंशन के पैसों को अलग कर दिया जाए तो रक्षा क्षेत्र के लिए 258589 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। पिछले वर्ष रक्षा बजट 246727 करोड़ रुपये का था। इस तरह 11862 करोड़ रुपये की कुल बढ़ोतरी की गई अर्थात यह वृद्धि मात्र 4.80 प्रतिशत है। चालू वित्त वर्ष में रक्षा मंत्रालय ने आवंटित राशि में से 11000 करोड़ रुपये की राशि लौटा दी है, जो रक्षा मंत्री के लिए राहत की बात है। इस तरह 2015-16 का संशोधित रक्षा बजट 235727 करोड़ रुपये का रह गया। देखा जाए तो 9.69 प्रतिशत की ही बढ़ोतरी की गई है।
इससे पहले वर्ष 2012-13 में 17 प्रतिशत, वर्ष 2013-14 में 14 प्रतिशत, वर्ष 2014-15 में 12.44 प्रतिशत और 2015-16 में 10.95 प्रतिशत की वृद्धि की गई थी। स्पष्ट है कि पिछले सालों की तुलना में मामूली वृद्धि हुई है जबकि भारत की रक्षा चुनौतियां काफी बढ़ गई हैं। पाकिस्तान से पश्चिमी सीमा पर खतरे एवं चुनौतियां बरकरार हैं। वहीं उससे ज्यादा रक्षा चुनौतियां चीन ने पूर्वोत्तर सीमा पर उत्पन्न कर रखी हैं। समुद्र की तरफ से भी भारत को चुनौतियां मिल रहीं हैं।
बजट पेश होने से पहले रक्षा मंत्रालय से संबद्ध संसद की स्थायी समिति ने सरकार को कहा था कि अगर भारत ने इस वर्ष अपना रक्षा बजट नहीं बढ़ाया तो देश की सुरक्षा को खतरा हो सकता है। इसलिए रक्षा बजट को बढ़ाकर कुल सकल घरेलू उत्पाद का ढाई से तीन प्रतिशत किया जाए। फिर भी रक्षा क्षेत्र के लिए आवंटित यह धनराशि सकल घरेलू उत्पाद का 2.18 प्रतिशत ही है। सरकार के कदम से लगता है कि उसने रक्षा क्षेत्र में बताई जा रही चुनौतियों को ध्यान में रखा लेकिन चीन से होड़ को पीछे छोड़ दिया है। चीन व पाकिस्तान सहित विश्व के कई देश भारत की तुलना में सुरक्षा पर अधिक धन खर्च कर रहें हैं। फिर भी भारत रक्षा पर दो फीसदी से कम ही खर्च कर रहा है। चीन का रक्षा बजट भारत के मुकाबले साढ़े तीन गुना ज्यादा है। उसके रक्षा बजट में सालाना वृद्धि औसतन 13 फीसदी है।
भारत की लगातार बढ़ती रक्षा चुनौतियों के बावजूद वित्त मंत्री ने पिछले बजट के भाषण में ही साफ कर दिया था कि सरकार हथियारों की खरीद की अंधी दौड़ में शामिल होने वाली नहीं है और अपनी रक्षा जरूरतों के लिए भी भारत का जोर अब आत्मनिर्भरता हासिल करने पर होगा। स्पष्ट है कि मेक इन इंडिया के नारे को सफल बनाने के उद्देश्य से ही रक्षा क्षेत्र को कम धन आवंटित किया गया। उद्देश्य यह है कि भारत नियंत्रित रक्षा इकाइयां, न केवल भारत के लिए रक्षा उपकरण बना सकें बल्कि इनका निर्यात करने में भी सक्षम हो सकें। इसीलिए लड़ाकू विमानों सहित अन्य रक्षा उपकरणों के लिहाज से देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए मेक इन इंडिया नीति को आगे बढ़ाया जा रहा है।
अगर रक्षा मंत्रालय की मानें तो उसकी लगभग 66 योजनाओं को पूरा किया जाना है। ये योजनाएं मंत्रालय में प्राथमिक मंजूरी के स्तर पर हैं। वर्ष 2014 में सत्ता में आने के बाद राजग सरकार ने अब तक डेढ़ लाख करोड़ रुपये के रक्षा सौदों को मंजूरी प्रदान कर रखी है। इन्हें भी 2016-17 के वित्तीय वर्ष में पूरा किया जाना है। सिपरी की नवीनतम रिपोर्ट के मुताबिक भारत हथियारों का सबसे बड़ा आयातक देश है। रक्षा मंत्री इस टैग को हटाना चाहते हैं। इसे हटाने व मेक इन इंडिया को बढ़ाने के लिए एक बड़ी धनराशि की जरूरत है। तभी दोनों प्रकार की योजनाएं पूरी हो सकेंगी। रक्षा उपकरणों के अधिकांश आर्डर स्वदेशी कम्पनियों को दिए गए हैं। ये सभी बगैर धन के पूरे नहीं होंगे।
यदि थल सेना की जरूरतों की तरफ ध्यान दिया जाए तो भारत को 400 तोपों की जरूरत है। जिन्हें अमेरिका से खरीदा जाना है। थल सेना के हेलीकाप्टर बेड़े की मजबूती के लिए 197 हल्के उपयोग वाले हेलीकॉप्टरों की खरीद की जानी है। इसके अलावा बड़ी संख्या में टैंकों, असाल्ट राइफलों, स्नो स्कूटर, सुरंग रोधी वाहनों, बुलेट प्रूफ जैकेटों, हाई एंकल बूट, कैनवास रबर सोल वाले जूते, रॉकेट लांचरों, नाइटविजन चश्मों, कारबाइनों व मशीनगनों की जरूरत है। यह सब आयुध प्रणालियां इस बजट से कैसे पूरी होंगी?
वायु सेना की 126 बहुउदेद्शीय लड़ाकू विमानों की वर्षों पुरानी मांग को पूरा करने के लिए 36 राफेल विमानों की खरीद की जा रही है। तेजस विमानों का उत्पादन शुरू करने के अलावा वायु सेना को 300 हेलीकॉप्टरों की जरूरत है। इन सबके लिए भी धन की आवश्यकता होगी। नौसेना की जरूरतों में पोजीडान विमान, लैंडिंग पंटून गोदी, कामोव-31 हेलीकाप्टर, नए बहुउदेद्शीय हेलीकॉप्टर व पनडुब्बी निरोधक बम शामिल हैं। अमेरिका से 21 अपाचे व 15 चिनूक हेलीकॉप्टरों की खरीद का आर्डर अभी हाल ही में दिया गया है। इस तरह प्रस्तावित रक्षा बजट कम ही रहेगा।